पुराने ज़माने की बात है। किसी गाँव में एक गुजराती शेठ रहेता था। उसका नाम था नाथालाल शेठ। वो जब भी गाँव के बाज़ार से निकलता था तब लोग उसे नमस्ते या सलाम करते थे , वो उसके जवाब में मुस्कुरा कर अपना सिर हिला देता था और बोहत धीरे से बोलता था की ” घर जाकर बोल दूंगा “
एक बार किसी परिचित व्यक्ति ने शेठ को ये बोलते हुवे सुन लिया। तो उसने कुतूहल वश शेठ को पुछ लिया कि शेठजी आप ऐसा क्यों बोलते हो के ” घर जाकर बोल दूंगा “
तब शेठ ने उस व्यक्ति को कहा, में पहेले धनवान नहीं था उस समय लोग मुझे ‘नाथू ‘ कहकर बुलाते थे और आज के समय में धनवान हु तो लोग मुझे ‘नाथालाल शेठ’ कहकर बुलाते है। ये इज्जत मुझे नहीं धन को दे रहे है ,
इस लिए में रोज़ घर जाकर तिज़ोरी खोल कर लक्ष्मीजी (धन) को ये बता देता हु कि आज तुमको कितने लोगो ने नमस्ते या सलाम किया। इससे मेरे मन अभिमान या गलतफैमी नहीं आती कि लोग मुझे मान या इज्जत दे रहे है। … इज्जत सिर्फ पैसे की हैं इंसान की नहीं
1 thought on “Abhimaan”
Comments are closed.
BAHOT SAHI HAI.MAINEBHI YE AJMAYA HAI ,KUCH HADTAK ANUBHAV KIYA HAI.